महबूब खान के बैनर महबूब प्रोडक्शन्स का हंसिया और हथौड़ा इस बात का गवाह था कि वह सोशलिस्ट विचारधारा के थे। ऐसा स्वाभाविक भी था। गुजरात के गाँव बिल्मोरा के रमज़ान खान ने बॉलीवुड का महबूब खान बनने के सफर में फिल्म निर्माता और घोडा सप्लायर के अस्तबल में घोड़ों की नाल ठीक करने का काम करने से लेकर फिल्म अलीबाबा चालीस चोर के चालीस चोरो में से एक चोर की भूमिका की। उनकी फिल्मों में गरीबी, संघर्ष, शोषण, ज़मींदार, आदि ताकतवर और कमज़ोर चरित्रों का पॉजिटिव चित्रण मिलता है। मेरी जान, दिलावर और ज़रीना जैसी फिल्मों में अभिनय के बाद महबूब खान ने फिल्म अल हिलाल उर्फ़ जजमेंट ऑफ़ अल्लाह (१९३५) से बतौर निर्देशक कदम रखा। महबूब खान ,नमाज़ी आदमी थे। लेकिन, उनकी फिल्मों में कभी भी धार्मिक तनाव या थोथे उपदेश नज़र नहीं आये। उनकी फ़िल्में या तो ठेठ सामाजिक होती थी या फिर रोमांस से भीगी। उन्होंने जागीरदार, वतन और एक ही रास्ता जैसी लीक से अलग सफल फ़िल्में बनाई। लेकिन, उन्हें ख़ास सराहना मिली पर्ल एस बक के उपन्यास मदर पर आधारित फिल्म औरत से। इस फिल्म में उन्होंने एक सूदखोर साहुकार के अत्याचारों से तंग आकर गाँव छोड़ कर चले गए किसान की अकेली औरत के संघर्ष को दिखाया था। इस फिल्म को सराहना के साथ साथ बड़ी सफलता भी मिली। लेकिन, महबूब को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति मिली औरत के रीमेक मदर इंडिया (१९५७) से। इस फिल्म को ऑस्कर पुरस्कारों में नामांकन मिला। महबूब को श्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला। उन्होंने म्यूजिकल मनमोहन और जागीरदार बनाई तो ज़मींदार के अत्याचार पर रोटी भी बनाई। दो पुरुषों के एक स्त्री से प्रेम की कहानी अंदाज़ समय से काफी पहले की फिल्म थी। इस फिल्म ने हिंदी सिनेमा को त्रिकोण फ़िल्में बनाने का फार्मूला दिया। हलके फुल्के रोमांस वाली फिल्म अनमोल घड़ी बड़ी हिट फिल्म साबित हुई। दिलीप कुमार, नादिरा और निम्मी अभिनीत फिल्म आन देश की पहली टैक्नीकलर फिल्म थी। महबूब खान एक साफ़ दिल आदमी थे। राजकपूर के साथ रोमांस के कारण नर्गिस फिल्म आन को बीच रास्ते छोड़ कर चली गई थी, लेकिन, इसके बावजूद महबूब खान ने मदर इंडिया की राधा नर्गिस को ही बनाया। उन्होंने ऐतराज़ करने पर दिलीप कुमार को हटा कर सुनील दत्त को बिरजू बना दिया। लेकिन, दिलीप कुमार का दबाव सहन नहीं किया। यहाँ उल्लेखनीय है कि नर्गिस को तक़दीर फिल्म से नायिका बनाने वाले महबूब खान ही थे। उन्होंने ही फातिमा को नर्गिस नाम दिया था। कैसी विडम्बना है कि लगातार हिट फिल्म देने वाले महबूब खान की आखिरी फिल्म सन ऑफ़ इंडिया (१९६२) फ्लॉप हो गई । इस फिल्म की रिलीज़ के दो साल के अंदर महबूब खान का भारत के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के एक दिन बाद २८ मई १९५७ को निधन हो गया। उनकी सौंवी जन्मतिथि पर भारत सरकार के डाक विभाग ने डाक टिकट जारी किया था।
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