साउथ के डाइरेक्टर आम जनता की नब्ज समझते हैं। बॉलीवुड के तमाम खानों को दक्षिण की हिट फिल्मों ने ही सौ करोड़िया अभिनेता बनाया है। सलमान खान को सौ करोड़ का अभिनेता बनाने वाली फिल्म दबंग के डाइरेक्टर प्रभूदेवा ने साबित कर दिया है कि वह मसाला फिल्म कैसे बनाई जाती हैं, अच्छी तरह से जानते हैं।
कहानी की बात करें तो राउडी राठोर के कहानी घिसी पिटी है। हमशक्ल पुलिस वाला और चोर की कहानी एक बार नहीं कई बार देखी सुनी गयी है। तेलुगू फिल्म vikramarkudu का रीमेक इस फिल्म की कहानी एक छोटे कस्बे के पुलिस वाले की है। जिसके आने के बाद एक छोटे मोटे गुंडे का आतंक खत्म हो जाता है। विजयेन्द्र प्रसाद और एन प्रकाश की लिखी इस फिल्म की पटकथा शिराज अहमद ने लिखी है। इस पटकथा में दम है। हर दृश्य नया सा लगता है। यहाँ तक की बार बार का देखा पुलिस वाला भी और उसकी खूबसूरत भारतीय परिवेश वाली प्रेमिका भी। फिल्म में एक्शन, कॉमेडी, नाच गाना और इमोशन को बड़े संतुलित तरीके से पिरोया है। अक्षय कुमार के होते हुए भी प्रभूदेवा ने उन्हे अक्षय कुमार नहीं बनाए दिया है। वह शिवा और इंस्पेक्टर विक्रम सिंह राठोर लगते हैं। एक्शन हैरतअंगेज हैं, लेकिन दहलाते नहीं। साजिद वाजिद ने मस्त संगीत दिया हैं, जो फिल्म के माहौल के अनुकूल है। खास तौर पर सोनाक्षी सिन्हा को अच्छे ठुमके लगाने को मिले है। इसके लिए फिल्म के तीन choreographers से ज़्यादा प्रभूदेवा की समझ ज्यादा जिम्मेदार है। उन्होने पुलिस और चोर की इस कहानी में विक्रम राठोर की बेटी के जरिये इमोशन पैदा किए हैं। प्रभूदेवा ने दबंग में एक छोटे विलेन सोनू सूद का उपयोग किया था। इस फिल्म में विलेन चेहरे जाने पहचाने नहीं। लेकिन प्रभूदेवा न उनके चेहरों के क्लोजअप के जरिये आतंक का माहौल बखूबी बनाए रखा है। अक्षय कुमार के टक्कर का विलेन देखने की ज़रूरत ही नहीं महसूस होती। फिल्म में गाड़ियों को जलाने के दृश्य रोहित शेट्टी की फिल्मों की याद दिलाते हैं, लेकिन प्रभूदेवा ने गाड़ियों को अपनी स्टाइल में जलाया है, दर्शक ज़बरदस्त तालियाँ बजाता है। संतोष ठुंडील का कैमरा एक्शन के रोमांच को आसमान पर पहुंचाता है, वही सोनाक्षी सिन्हा की खूबसूरती को उभारता है।
अक्षय कुमार इस प्रकार की भूमिका बहुत बार कर चुके हैं। राउडी राठोर में अक्षय ने इन दोनों भूमिकाओं को भिन्न रखा ही है, लाउड भी नहीं होने दिया है। उनके शरीर पर वर्दी कम रही है, लेकिन संवाद धुआंधार रहे हैं। उनकी कोमड़े जितना हँसाती हैं, एक्शन उतना ही रोमांचित करते हैं।
सोनाक्षी सिन्हा की दबंग के दो साल बाद दूसरी फिल्म रीलीज़ हुई है। वह बेहद खूबसूरत और शोख लगी हैं। उन्हे देखते हुए पुराने जमाने की अभिनेत्रियों की याद अनायास आ जाती हैं। उनमे अभिनय प्रतिभा भी है। वह जहां नज़ाकत दिखती हैं, वही इमोशन भी कर जाती हैं। उन्हे देख कर श्रीदेवी की याद आती रहती है। इसलिए नहीं कि वह श्रीदेवी की नकल कर रही थीं, बल्कि वह श्रीदेवी की तरह हरफनमौला अभिनेत्री साबित होती थीं।
नासर साउथ के बड़े विलेन हैं। हिन्दी फिल्मों में उन्हे कोई नहीं जानता। लेकिन वह अक्षय के सामने अपनी मौजूदगी दर्ज़ कराते हैं। जयंत गदेकर का क्लोजअप दर्शकों को खूंखार गुंडे की याद दिलाता है। परेश गणत्रा और काजल वशिष्ठ प्रभावित करते हैं। बाकी सब कलाकार अपने अपने रोल में ठीक ठाक हैं।
साजिद वाजिद का संगीत और समीर, फैज, शिराज और साजिद के गीत फिल्म को मनोरंजक बनाते हैं। मिका और वाजिद का गया चिंता ता चिता चिता, धड़ंग ढंग ढंग, छमक छल्लों, आदि गीत फिल्म के बहाव को रोकते नहीं, टेंशन को रीलीज़ करने वाले हैं। संदीप चौटा ने कहानी के माहौल के अनुरूप पार्श्व संगीत दिया है। संजय संकला के कुशल सम्पादन के कारण फिल्म की लंबाई नियंत्रण में रही ही है, इसकी तेज़ी भी बरकरार रही है। एक्शन फिल्मों में एडिटिंग इंपोर्टेंट होती है।
फिल्म में अक्षय कुमार है, लेकिन यह केवल अक्षय कुमार की फिल्म नहीं। यह सोनाक्षी सिन्हा की फिल्म भी है और कम जाने पहचाने चेहरों की भी। क्यूंकी यह फिल्म प्रभूदेवा की है, जो जानते हैं कि दर्शकों के मनोरंजन के लिए बड़े चेहरे नहीं, पकड़ वाली पटकथा और निदेशक की दृष्टि होनी चाहिए।
गर्मियों की छुट्टियों में समय बिताने का अच्छा मसाला है राउडी राठोर।
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