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श्यामा फिल्म ज़बक में महिपाल के साथ |
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मंगलवार, 14 नवंबर 2017
नहीं रही आर पार की श्यामा
रविवार, 23 जुलाई 2017
किस्मत (१९४३) में अशोक कुमार के बचपन की भूमिका की थी महमूद ने
आज मशहूर हास्य अभिनेता महमूद की पुण्य तिथि (२३ जुलाई २००४) है। उनका ७१ साल की उम्र में देहांत हुआ था। वह लतीफुन्निसा के एक्टर-डांसर मुमताज़ अली के आठ बच्चों में से दूसरे नंबर के थे। चूंकि, फ़िल्मी पृष्ठभूमि से थे, पिता ४० और ५० के दशक में फिल्म इंडस्ट्री के बड़े नाम थे, इसलिए उनको अभिनय का चस्का लगना ही था। बॉम्बे टॉकीज की फिल्म किस्मत (१९४३) में उन्होंने अशोक कुमार के बचपन का रोल किया था। फिल्मों में काम पाने के लिए उन्होंने काफी पापड बेले। मीना कुमारी के टेबल टेनिस कोच से वह मीना कुमारी के बहनोई बने। राजकुमार संतोषी के पिता पीएल संतोषी के ड्राइवर बने। मीना कुमारी की बहन मधु से शादी करने के बाद खुद को सेटल करने के लिए उन्होने दो बीघा ज़मीन और प्यासा जैसी फिल्मों में छोटी भूमिकाएं की। अपने कॉमेडियन के क्षेत्र में घोर प्रतिद्वंद्वी जॉनी वॉकर से उनकी अच्छी छनती थी। अरुणा ईरानी के साथ उनके रोमांस की खबरे शादी तक पहुंची। शुरूआती दौर में अमिताभ बच्चन की मदद करने वाले महमूद ही थे। उन्होंने अपने घर में अमिताभ को कमरा दिया। राहुल देव बर्मन उर्फ़ पंचम दा को पहला ब्रेक छोटे नवाब में महमूद ने ही दिया था। महमूद वास्तव में तमिल ओरिजिन के थे। उनके दादा अर्कोट के नवाब थे। इसीलिए महमूद अपनी फिल्मों के किरदारों में तमिल उच्चारण का बहुधा उपयोग किया करते थे। उन्होंने सात फिल्मों भूत बंगला, कुंवारा बाप, जीनी और जॉनी, दो दिलवाले, एक बाप छह बेटे, जनता हवलदार और दुश्मन दुनिया का निर्देशन किया।
बुधवार, 24 मई 2017
बांड्स ने बांड को कहा- अलिवदा !
लन्दन में १४ अक्टूबर १९२७ को जन्मे
रॉजर मूर अंतिम यात्रा पर निकल गए हैं। उन्होंने १९७३ में बांड फिल्म लिव एंड लेट् डाई से
जेम्स बांड का थ्री पीस सूट पहना था। वह पहले जेम्स बांड होते, अगर पहले से ही
टीवी पर व्यस्त न रहे होते। इस पर सीन कांनेरी को पहला जेम्स बांड बनने का मौका मिला। सीन कांनेरी छः बांड फिल्मों डॉक्टर नो, फ्रॉम रसिया विथ लव, गोल्डफिंगर, थंडरबॉल, यू ओनली लिव ट्वाइस और डायमंड्स आर फॉरएवर में काम किया। उनके बांड फिल्म छोड़ने के बाद, रॉजर मूर ने १९७३ से १९८५ तक कुल सात बांड
फ़िल्में (लिव एंड लेट डाई, द मैन विथ द गोल्डन गन, द स्पाई हु लव मी, मूनरेकर, फॉर योर आईज ओनली, ऑक्टोपसी और अ व्यू टू किल) की। वह सबसे ज्यादा उम्र के मगर सबसे ज्यादा बांड फिल्म करने वाले एक्टर
बने। उनके निधन पर जेम्स बांड का किरदार करने वाले तीन अभिनेताओं ने उन्हें हार्दिक
भावांजलि दी है। बांड फिल्मों के पहले जेम्स बांड सीन कांनरी, जिनसे रॉजर मूर ने बांड का चार्ज लिया था, ने रॉजर मूर
से अपनी दोस्ती को याद करते हुए कहा, “मैं रॉजर के जाने से बेहद दुखी हूँ। हॉलीवुड
के लिहाज़ से हम लोगों की दोस्ती असामान्य लम्बी थी। हम लोग जब भी मिलते लतीफे सुनते-सुनाते और खूब हंसते। मैं उन्हें मिस करूंगा।”
रॉजर मूर के बाद टिमोथी डाल्टन ने दो बांड फ़िल्में द लिविंग डे लाइट्स और
लाइसेंस टू किल की। इसके बाद, १९९३ में पियर्स ब्रोसनन जेम्स बांड बने। उन्होंने
चार बांड फ़िल्में की। पियर्स ब्रोसनन रॉजर मूर को अपने समय का महानतम बांड मानते
हैं। वह कहते है, “उन्होंने (रॉजर मूर ने) दुनिया को सात बार बचाया। इसके बाद उन्होंने इससे भी ज्यादा महान काम किये। यूनिसेफ के सेव द चिल्ड्रेन कार्यक्रम से जुड़े। वह
कभी अपने दर्शकों को भूले नहीं, हम उनको नहीं भूल पाएंगे। मुझे आपके पदचिन्हों पर
चल कर गर्व है मिस्टर रॉजर। आपके परिवार, दोस्तों और बच्चों को मेरी हार्दिक
संवेदनाएं।” डेनियल क्रेग २००६ (कैसिनो
रोयाले) से जेम्स बांड किरदार कर रहे हैं तथा अब तक चार बांड फ़िल्में कर चुके हैं। उन्होंने रॉजर मूर के साथ अपनी फोटो लगाते हुए ट्विटर पर लिखा, “उनसे अच्छा
(बांड) कोई नहीं कर सका।” जेम्स बांड परिवार के दूसरे सदस्यों ने भी रॉजर मूर को
श्रद्धांजलि दी। फिल्म के निर्माताओं माइकल जी विल्सन और बारबरा ब्रॉकली ने
अपना बयान जारी कर कहा, “सर रॉजर मूर के जाने की खबर से हम सदमे में हैं। उन्होंने
परदे पर जेम्स बांड को अपने हुनर, आकर्षण और हास्य से रिइन्वेंट किया। वास्तविक जीवन में उन्होंने यूनीसेफ के एम्बेसडर
के तौर पर दुनिया के बच्चों की कठिनाइयों को दूर करने के लिए काफी कुछ किया। वह
सच्चे और प्यारे दोस्त थे। उनकी यादे, उनकी फिल्मों और उनके कार्यों से हमेशा जीवित
रहेंगी। हम उन्हें बहुत मिस करेंगे।”
गुरुवार, 18 मई 2017
नहीं रही नामकरण की दयावंती मेहता !
कल रात (बुद्धवार) नौ बजे, जिन टेलीविज़न दर्शकों ने स्टार प्लस पर सीरियल
नामकरण में दयावंती मेहता को साज़िश रचते हुए देखा होगा, उन्हें आसानी से विश्वास
नहीं होगा कि इस किरदार को जीवंत बनाने वाली अभिनेत्री रीमा लागू का आज गुरुवार तड़के ३ बजे दिल का दौरा
पड़ने से निधन हो गया है । मृत्यु के समय उनकी उम्र मात्र ५९ साल थी । ३ फरवरी १९५८ को मराठी अभिनेत्री मन्दाकिनी
भडभडे के घर में जन्मी गुरिंदर भडभडे ने मराठी एक्टर विवेक लागू से शादी के बाद
अपना नाम रीमा लागू रख लिया था । मराठी रंगमंच से अपनी अभिनय यात्रा शुरू करने
वाली रीमा लागू को, बेहतरीन अभिनेत्री होने के बावजूद हिंदी फिल्मों में माँ के
किरदार से ही पहचान मिली । अस्सी और नब्बे के दशक में ३० साल की रीमा लागू, ५८ साल की निरुपा रॉय के साथ माँ की भूमिका किया करती थी। इसीलिए उन्हें बॉलीवुड की युवा माँ कहा जाता था। उनके फिल्म करियर की शुरूआत जब्बर पटेल निर्देशित फिल्म
सिंहासन (१९७९) और आक्रोश (१९८०) में लावणी डांसर की छोटी भूमिकाओं से हुई । उन्हें श्याम बेनेगल
ने अपनी आधुनिक महाभारत फिल्म कलयुग (१९८१) में किरण की थोड़ी बड़ी भूमिका से पहचान
दिलाई । लेकिन, रीमा को हिंदी फिल्मों ने तवज्जो नहीं दी । वह मराठी रंगमंच और फिल्मों में सक्रिय हो गई। १९८५ में उन्होंने
दूरदर्शन के सीरियल खानदान से छोटे परदे पर अपनी पारी शुरू की । लेकिन, तीन साल बाद, आमिर खान को नायक बनाने वाली फिल्म क़यामत से क़यामत तक (१९८८) में जूही चावला की माँ की
भूमिका करने के बाद, रीमा लागू पर माँ का ठप्पा लग गया । हालाँकि, इसी साल वह निर्देशक अरुणा राजे की गाँव की महिलाओं की सेक्स लाइफ पर फिल्म रिहाई में दो बच्चो की कामुक माँ का किरदार कर रही थी। लेकिन, क़यामत से क़यामत तक के बाद रीमा लागू
खुद से सात आठ साल छोटे सलमान खान, अक्षय कुमार, संजय दत्त, माधुरी दीक्षित, आदि
की माँ की भूमिका करने लगी । वह मैंने प्यार
किया, साजन और हम साथ साथ हैं में सलमान खान की, जय किशन में अक्षय कुमार की, कुछ
कुछ होता है में काजोल की, कल हो न हो में शाहरुख़ खान की, हम आपके हैं कौन में
माधुरी दीक्षित और मैं प्रेम की दीवानी हूँ में करीना कपूर की माँ बनी थी । रीमा, राजश्री बैनर की तमाम फिल्मों में माँ की भूमिका करती नज़र आई । बड़े
परदे पर उनकी सबसे दमदार माँ फिल्म वास्तव में संजय दत्त की माँ शांता थी । यह
किरदार नर्गिस दत्त का फिल्म मदर इंडिया में राधा के किरदार की टक्कर में था । इस
फिल्म के लिए उन्होंने फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला । रीमा लागू ने टीवी सीरियलों में
ज्यादा दमदार भूमिकाये की । ख़ास तौर पर सुप्रिया पिलगांवकर के साथ तू तू मैं मैं
में उनकी सास की भूमिका को खूब पसंद किया गया । इस समय दिखाए जा रहे स्टार प्लस के
सीरियल में उनका दयावंती मेहता का किरदार अपने कुटिल तेवरों से टीवी दर्शकों को प्रभावित कर रहा था ।
जहाँ तक हिंदी फिल्मों की बात है, वह पिछले पांच सालों से किसी हिंदी फिल्म में नज़र नहीं आई
। उनकी पिछली महत्वपूर्ण फिल्म पत्रकार से फिल्मकार बने सुहैब इलयासी की दहेज़ हत्या
की दफा ४९८-ए पर फिल्म ४९८-ए अ वेडिंग गिफ्ट (२०१२) थी । इस प्रतिभाशाली अभिनेत्री की
अकस्मात् विदाई दुखद है । उन्हें श्रद्धांजलि !
गुरुवार, 28 जुलाई 2016
महाश्वेता देवी की कहानी पर बनी थी संघर्ष
बांगला लेखिका महाश्वेता देवी का आज ९० साल की आयु में निधन हो गया। महाश्वेता देवी की रचनाओं पर कुछ यादगार और बहुप्रशंसित फिल्मों का निर्माण हुआ है। हिंदी दर्शकों को, पहली बार महाश्वेता देवी की कलम से बजरिया रुपहला पर्दा रुबरु होने का मौका मिला हरमन सिंह रवैल की फिल्म संघर्ष से। २७ जुलाई १९६८ को रिलीज़ यह फिल्म महाश्वेता देवी की लघु कथा लाय्ली आसमानेर अयना पर आधारित थी। यह फिल्म वाराणसी की मशहूर ठगी और ठगों के दो गुटों के बीच संघर्ष पर थी। इस फिल्म में दिलीप कुमार, वैजयंतीमाला, जयंत, बलराज साहनी, संजीव कुमार, उल्हास और इफ़्तेख़ार जैसे सशक्त अभिनेताओं ने दमदार अभिनय किया था। लेकिन, यह फिल्म फ्लॉप हुई थी। निर्देशक कल्पना लाजमी ने महाश्वेता देवी की एक अन्य लघु कथा पर फिल्म रुदाली का निर्माण किया। डिंपल कपाडिया, राज बब्बर, राखी और अमजद खान की मुख्य भूमिका वाली यह फिल्म ऑस्कर की विदेशी फिल्मों की श्रेणी के लिए भेजी गई। महाश्वेता देवी के १९७५ में प्रकाशित पुस्तक मदर ऑफ़ १०८४ पर गोविन्द निहलानी ने हजार चौरासी की माँ का निर्माण किया था। यह फिल्म एक ऐसी माँ की कहानी थी, जिसका पुत्र नक्सल आन्दोलन में अपनी जान गंवा देता है। इस फिल्म में जया बच्चन ने माँ की भूमिका की थी। इस फिल्म ने १९९८ में बेस्ट फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता। उनकी एक दूसरी लघु कथा चोली के पीछे पर एक इतालवी फिल्म डायरेक्टर इटालोस्पिनेली ने फिल्म गंगोर का निर्माण किया। इस फिल्म को बंगाली, संथाली और इंग्लिश में बनाया गया। यह फिल्म इतालवी भाषा में डब कर इटली के फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई। मशहूर फिल्म अभिनेता अमोल पालेकर की पत्नी चित्रा पालेकर ने महाश्वेता देवी की कहानी बायेन पर मराठी फिल्म माती माय का निर्माण किया था। महाश्वेता देवी की रचनाओं पर बनी यह सभी फ़िल्में सशक्त चरित्रों और समाज को निशाना बनाते कथानकों के कारण चर्चा में रहीं। उन्हें श्रद्धांजलि।
मंगलवार, 19 जुलाई 2016
रिकॉर्डिंग रूम से घबरा कर भाग खडी हुई थी मुबारक बेगम
पचास से सत्तर तक के तीन दशक ! फिजाओं में बेमुरव्वत बेवफा, मुझ को अपने गले लगा लो, कभी तन्हाइयों में हमारी याद आयेगी, हम हाल ए दिल सुनायेंगे, मेरे आंसुओं पे न मुस्कुराना, तू ने तेरी नज़र ने, देवता तुम हो मेरा सहारा, जब इश्क कहीं हो जाता है, ज़रा कह दो फिजाओं से, वादा हमसे किया, सांवरिया तेरी याद में, इतने करीब आ के भी, रात कितनी हसीं ज़िन्दगी मेहरबान, तेरी नज़र ने काफिर बना दिया,, वादा हमसे, साकिया एक जाम, कैसी बीन बजाई, मैं हो गई रे बदनाम, हसीनों के धोखें में न आना, यह जाने नज़र चिलमन से अगर, जलवा जो तेरा देखा, आदि गीत गूंजा करते थे। इन गीतों की गायिका थी बिलकुल अलग मगर दमदार आवाज़ की मल्लिका मुबारक बेगम। उनका स्नेहल भाटकर के संगीत निर्देशन में गाया फिल्म हमारी याद आएगी का शीर्षक गीत कभी तन्हाइयों में हमारी याद आएगी अपनी अलग किस्म की धुन और उसी के अनुरूप गूंजती मुबारक बेगम की आवाज़ के कारण आज भी यादगार है।
चुरू राजस्थान में १९४० में जन्मी मुबारक बेगम ने अपने सिंगिंग करियर की शुरुआत आल इंडिया रेडियो पर गीत गाने से की। उनका पहला गीत संगीतकार शौकत देहलवी, बाद में जिन्हें नाशाद नाम से जाना गया, ने फिल्म आइये के लिए रिकॉर्ड करवाया था। इस फिल्म के दो गीत मोहे आने लगी अंगडाई और आजा आजा बालम बेहद सफल हुए थे। लेकिन, इस गीत से पहले मुबारक बेगम दो बार रिकॉर्डिंग रूम छोड़ कर भाग गई थी। संगीतकार रफीक गजनवी ने उनका गायन रेडियो पर सुना था। उन्होंने अपनी फिल्म के लिए गीत गाने के लिए मुबारक को स्टूडियो में बुलाया। मगर वहां की भीड़ देख कर मुबारक बेगम के मुंह से आवाज़ तक नहीं निकल सकी। वह स्टूडियो से भाग गई।उन्हें दूसरी बार श्याम सुंदर ने फिल्म भाई बहन के गीत को गाने का मौका दिया। लेकिन, पहले वाली कहानी फिर दोहराई गई। मुबारक बेगम का समय बदला नर्गिस की माँ जद्दन बाई से मिलने के बाद। जद्दन बाई ने उनका गाना सुना। उनकी हौसला अफ़ज़ाई की। उन्होंने उनकी आवाज़ की तारीफ कई संगीतकारों से की। नतीज़तन, मुबारक बेगम को आइये फिल्म में गाने का मौका मिला। इसके बाद तो मुबारक बेगम ने नौशाद, सचिन देव बर्मन, शंकर जयकिशन, खय्याम, दत्ताराम, आदि कई संगीतकारों के लिए गीत गए। उन्होंने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सभी बड़े सितारों की फिल्मों के चरित्रों को अपनी आवाज़ दी।
दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला की फिल्म मधुमती में मुबारक बेगम का गाया गीत ‘हम हाले दिन सुनायेंगे’ काफी पॉपुलर हुआ था। उनकी आवाज़ का जादू ही ऐसा था कि लता मंगेशकर के गाये फिल्म के तमाम गीतों के बीच भी मुबारक बेगम का गाया यह गीत दर्शकों के कानों में रस घोलने में कामयाब हुआ था। कैसी विडम्बना है कि मुबारक बेगम अपने दिल का हाल सुनाना चाहती थी, लेकिन, कोई सुनने को तैयार नहीं था। लता मंगेशकर और आशा भोंसले की आवाजों के वर्चस्व में मुबारक बेगम अप्रासंगिक हो गई। उनके गीत लता मंगेशकर या आशा भोंसले से रिकॉर्ड कराये जाने लगे। जब जब फूल खिले का परदेसियों से न अखियाँ मिलाना गीत मुबारक बेगम की आवाज़ में रिकॉर्ड हुआ था। लेकिन, जब एल्बम बाहर आया तो इसमे लता मंगेशकर की आवाज़ थी। इसके साथ ही मुबारक बेगम निराशा के गर्त में डूबती चली गई। १९८० में निर्मित फिल्म राम तो दीवाना है का सांवरिया तेरी याद मुबारक बेगम का गाया आखिरी गीत बन गया।
मुबारक बेगम का आखिरी समय फांकों में गुजरा। पौष्टिक आहार की कमी ने उन्हें बीमार बना दिया था। उन्हें पेट की बीमारी हो गई। उनकी बेटी का पिछले साल निधन भी बीमारी के कारण हुआ। उन्हें अपने इलाज़ और खाने पीने के लिए एनजीओ और ट्रस्ट के सहारे रहना पड़ा। लता मंगेशकर ट्रस्ट उनकी नियमित मदद करता था। लेकिन, इसकी एक सीमा थी। सलमान खान ने भी एक बार उनके इलाज़ के लिए एकमुश्त धनराशि हॉस्पिटल को दी थी। कुछ महीना पहले महाराष्ट्र सरकार ने ८० हजार के चेक के साथ उनके इलाज़ का पूरा खर्च वहन करने का ऐलान किया था। एक पूर्व विधायक यशवंत बाजीराव उन्हें पांच हजार रुपये की नियमित मदद दिया करते थे। सोमवार की रात मुबारक बेगम सभी मदद को नकार कर अलविदा कह गई।
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