१९८४ में रिलीज़
अमिताभ बच्चन की फिल्म शराबी में संगीतकार बप्पी लहरी ने एक गीत रचा था- जहाँ चार
यार मिल जाएँ वहीँ रात हो गुलजार। हालाँकि,
एक अमीर आदमी के शराबी पुत्र की इस कहानी
में रोमांस था और उनकी इंस्पेक्टर बने
दीपक पराशर की दोस्ती की कहानी थी। इस
गाने से एक बात तो साफ़ होती ही है कि जहाँ चार यार मिल जाएँ, वहीँ रात हो गुलजार, लेकिन जब फिल्म की कहानी दो किरदारों की दोस्ती
की कहानी है तो यह सोचा जाना लाजिमी है कि जहाँ तीन यार मिल जाएँ तो क्या होता
होगा ?
तीन दोस्तों की
दोस्ती की मस्ती और धमाल
इस हफ्ते निर्माता
साजिद नाडियाडवाला की साजिद फरहाद निर्देशित फिल्म हाउसफुल ३ रिलीज़ हो रही है। यह
फिल्म तीन दोस्तों सैंडी, बंटी और टेडी की कहानी है। इन
भूमिकाओं को अक्षय कुमार, अभिषेक बच्चन और रितेश देशमुख कर रहे हैं। जब तीन यार मिल जाएँ तो रोमांस भरा धमाल तो
होना ही है। जी हाँ, हाउसफुल फ्रैंचाइज़ी की इस तीसरी फिल्म में खूब
मस्ती और कॉमेडी है। इनके साथ जैक्विलिन फर्नाडीज, नर्गिस फाखरी और लिसा हैडन का ग्लैमर और सेक्स
अपील भी है। इसमें कोई शक नहीं कि जब तीन दोस्त मिलते हैं तो गज़ब की कॉमेडी होती
है। फिल्म मस्ती हो या ग्रैंड मस्ती या
फिर आने वाली ग्रेट ग्रैंड मस्ती, फुल 2 फुलटॉस मस्ती
है। इसे आप द्विअर्थी या अश्लील मस्ती भी
कह सकते हैं। विवेक ओबेरॉय, रितेश देशमुख और आफताब शिवदसानी की दोस्त तिकड़ी
हंसाते हंसाते लोटपोट कर देती है। यही
कारण है कि निर्देशक लव रंजन की २०११ में रिलीज़ तीन दोस्तों रजत, निशांत और विक्रांत की कॉलेज की दोस्ती की
दास्ताँ स्लीपर हिट साबित होती है। बावजूद कार्तिक आर्यन, दिव्येंदु शर्मा और रायो एस बखिर्ता के नए चेहरों
के। यहाँ तक कि इस फिल्म का सीक्वल भी हिट
साबित होता है। प्रियदर्शन ने २००० में
तीन दोस्तों के साथ कॉमेडी को नए आयाम दिए थे। राजू, घनश्याम और बाबूराव गणपत राव आप्टे की इस कॉमेडी
चखचख में साफ़ सुथरा हास्य भरा था। अक्षय
कुमार, सुनील शेट्टी और
परेश रावल ने कॉमेडी का कुछ ऐसा बारूद बनाया था कि हेरा फेरी की फ्रैंचाइज़ी बन
गई। फिर हेरा फेरी के बाद खबर थी कि तीसरी
फिल्म में अक्षय, सुनील और परेश नहीं
होंगे। लेकिन, बात नहीं बनी। निर्माता फ़िरोज़ नाडियाडवाला को
इन्हीं तीनों की हेरा फेरी चाहिए। बासु
चटर्जी ने १९८२ में तीन बूढ़े दोस्तों की कहानी शौक़ीन में दिखाई थी,
जो एक मॉडल पर लाइन
मारने लगते हैं। अपनी साफ़ सुथरी कॉमेडी
कारण यह फिल्म हिट हुई थी। इसके बाद २०१४
में इस फिल्म का रीमेक पियूष मिश्र, अनुपम खेर और अन्नू कपूर के साथ द शौकीन्स बनाया गया तो दर्शकों ने इसे नापसंद कर दिया। अनीस बज़्मी की फिल्म नो
एंट्री इसी फार्मूला पर फिल्म थी। मनमोहन देसाई ने अपनी फिल्मों में तीन दोस्तों
के फॉर्मूले को खूब आज़माया।
नज़रिए का फर्क
हॉउसफुल, मस्ती और हेरा फेरी की फ्रैंचाइज़ी फिल्मों की शैली कॉमेडी कॉमेडी और सिर्फ कॉमेडी
है। वहीं, कभी लेखक के नज़रिए का फर्क किरदारों के सोचने में
फर्क पैदा कर देता है। तीन हँसते खेलते
दोस्तों की ज़िन्दगी में गम्भीर मोड़ आ जाता है।
तीनों दोस्त किरदार अपने रोमांस के साथ गम्भीर हो जाते हैं। कदाचित इस नज़रिए की शुरुआत फरहान अख्तर ने
फिल्म दिल चाहता है से की थी। हँसते,
मज़ाक करते और बेपरवाह नज़र आते आमिर खान,
सैफ अली खान और अक्षय खन्ना के किरदार खुद
की ज़िन्दगी में आये मोड़ से भावुक हो जाते हैं। वह परवाह करने वाले ज़िम्मेदार बन
जाते हैं। कुछ ऐसा ही काई पो चे, रंग दे बसंती, रॉक ऑन, ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा में भी देखने को मिलता है। राजकुमार हिरानी की फिल्म ३ इडियट्स इसे शिक्षा
की ऊंचाइयों तक पहुंचा देती है। रंग दे
बसंती के तीन दोस्त सिस्टम को बदलने के लिए हथियार उठा लेते हैं।
दो लडके एक लड़की :
क्या होता है !
जब तीन दोस्त मर्द
हो तो धमाल होता है, क्लाइमेक्स में थोड़ी
सीरियसनेस भी आती है। लेकिन---अगर इन तीन
किरदारों में से कोई एक लड़का या लड़की हो तब ! शायद महबूब खान ने पहली बार फिल्म
में इस नज़रिए को दिखाने की कोशिश की थी।
फिल्म थी अंदाज़। दोस्त थे दिलीप
कुमार, राजकपूर और
नर्गिस। क्या दो मर्दों के साथ एक औरत की
दोस्ती हो सकती है। महबूब ने यह बताने की
कोशिश की थी कि मनमुटाव तो होना ही है।
लेकिन, समझदारी बड़े काम की
चीज़ है। एक दोस्त को बलिदान देना
चाहिए। बलिदान का यह फार्मूला राज कपूर ने
फिल्म संगम में भी दिखाया। राजकपूर और
वैजयंतीमाला के लिए राजेंद्र कुमार को बलिदान करना पड़ा। इस बलिदान को १९८८ में सनी देओल, अनिल कपूर और श्रीदेवी के साथ सुनील हिंगोरानी ने
भी दोहराया। सनी देओल को बलिदान देना
पड़ा। लॉरेंस डिसूज़ा की फिल्म साजन में
सलमान खान अपने दोस्त संजय दत्त के लिए माधुरी दीक्षित का बलिदान कर देते
हैं।
दो लडकिया, एक लड़का : तब क्या होता है !
जब दोस्ती से उपजे
रोमांस फिल्मों के किरदारों में थोड़ा फर्क कर दिया जाता है यानि आपस में दोस्त दो
लड़कियां एक ही लडके को प्यार करने लगें तो क्या होता हैं ! यहाँ एक ख़ास बात
शाहरुख़ खान ने ऐसी कई फिल्मों में काम
किया है, जिनमे एक लड़के से दो
लड़कियां प्रेम करने लगाती हैं। कुछ कुछ
होता है में काजोल और रानी मुख़र्जी,
दिल तो
पागल में करिश्मा कपूर और माधुरी दीक्षित, देवदास में ऐश्वर्या राय और माधुरी दीक्षित और जब
तक है जान में कैटरिना कैफ और अनुष्का शर्मा के किरदार शाहरुख़ खान के किरदार से प्रेम
करती हैं। इन इन दो औरतों में से एक
बलिदान देती है। यहां एक ख़ास नुक्ता है ।
यह बलिदान भारतीयता की झलक मारती नारी के लिए आधुनिक नायिका को देना पड़ता
है। कॉकटेल में दीपिका पादुकोण सैफ अली
खान को केवल इस कारण से खो देती हैं, क्योंकि वह आधुनिकता के रंग में रंगी थी। मुझसे दोस्ती करोगे में इकलौते ह्रितिक रोशन से
रानी मुख़र्जी और करीना कपूर प्यार करती
हैं। विदेश से आई करीना कपूर बलिदान करती है।
सलमान खान को भी हर दिल जो प्यार करेगा और चोरी चोरी चुपके चुपके जैसी
फिल्मों में दो नायिकाएं प्यार करती हैं। इन सभी रोमांस की शुरुआत दोस्ती से ही
होती है।
शाहरुख़ खान का हटके
अंदाज़
शाहरुख़ खान की
रोमांस फिल्मों में दो नायिका भी थी और दो नायक भी। मतलब दो स्त्रियां उनसे रोमांस कराती हैं या
उनके साथ दूसरा नायक भी इकलौती नायिका से प्रेम करने लगता है। इस रोमांस में खान दो नए रंग पेश करते
हैं। वह बलिदान देना नहीं जानते। बाज़ीगर, डर और अंजाम जैसी फिल्मों में वह खून खराबा करने
पर उतर आते हैं। बाज़ीगर में तो वह अपने से
प्यार करने वाली शिल्पा शेट्टी की हत्या कर
देते हैं और काजोल को भी मारने का प्रयास करते हैं। डर और अंजाम फिल्मों में वह जूही चावला और
माधुरी दीक्षित के किरदारों को पाने के लिए खून बहाने से पीछे नहीं हटते ।
ज़ाहिर है कि तीन
दोस्तों की दोस्ती धमाल करने वाली होती है।
बलिदान भी होता है, लेकिन हाउसफुल ३ में ऐसी कोई गुंजायश नहीं। तीनों नायकों की एक एक नायिका है। आगामी कई फिल्मों में इस प्रकार के कई रंग देखने को मिल सकते
हैं। क्योंकि, हिंदी फिल्मों को यार बिना
चैन कहाँ रे !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें