मंगलवार, 21 मई 2013

शर्मा जी कहिन सेंसर बोर्ड की दोहरी नीति

 
मीडिया के दोस्तों मेरा नाम हरीश शर्मा है पिछले १५ सालों से फिल्म पी आर में  हूँ यह तो था मेरा  परिचय . अब बात करते हैं अपने इस लेख के बारे में जिस पर शायद आप कोई तवज्जो न दे क्योंकि मैं कोई एकता कपूर या एक्सेल इंटरटेनमेंट तो हूँ नहीं  लेकिन बतौर फिल्म निर्देशक मेरे लिए सेंसर बोर्ड के विषय में लिखना अब बहुत ही जरुरी हो गया है। पहले मैं यह सोचता रहा कि यह लिखना कहीं सेंसर बोर्ड से पंगा लेना तो नहीं होगा लेकिन अब हिम्मत कर  पंगा ले ही रहा हूँ . 
मैंने  एक छोटी सी सुपर नैचुरल फिल्म , हमारे  यहाँ आज भी इसे हॉरर फिल्म ही कहा  जाता है "२ नाइट्स इन सोल वैली" का निर्देशन किया है. ४० लाख की प्रोडक्शन वैल्यू के साथ मैंने एक ऐसी साफ़ सुथरी हॉरर फिल्म बनायी जिसमें न खून है न खून खराबा है , जो की हर हॉरर फिल्म  की बुनियादी जरुरत होती  है   
मैंने फिल्म का प्रचार शुरू से ऐसे किया था कि यह भारत की पहली सुपर नैचुरल फिल्म होगी जो आप परिवार के  साथ घर में टी वी  पर नहीं बल्कि सिनेमा हाल में देख सकते हैं . इस उम्मीद से की मेरी फिल्म को यू सर्टिफिकेट या सेंसर बोर्ड को फिल्म समझ आयी तो यू-ए का सर्टिफिकेट देंगे .लेकिन सेंसर बोर्ड के ५-६ लोगों ने फिल्म देख कर '' सर्टिफिकेट दे दिया . सेंसर बोर्ड के अधिकारी का कहना था  कि आपकी फिल्म हॉरर होने के बाद भी साफ़ सुथरी है लेकिन चूंकि हॉरर फिल्म है इसलिये हम इसको 'सर्टिफिकेट देंगे. हमने उनसे इस बारे में बाते की अपनी राय भी दी और  उनसे खासी  बहस भी की कम से कम यू-ए तो दे. लेकिन उन्होंने कहा कि ,हम तो ए ही देंगे ,आप अपना विरोध जाहिर कर सकते हैं. और हाँ टी वी  राइट्स के लिए दोबारा स्क्रीनिंग करियेगा हम आपको ऐसे ही यू ए सर्टिफिकेट दे देंगे. अब यदि यू या यू ए के लिए जरुरी कार्यवाही करते तो औपचारिकता में ही २-३ महीने   निकल जाते . खैर हमने जैसे -  तैसे दिल्ली यू पी और पंजाब में फिल्म खुद ही रिलीज़ की.  हमारे   डिस्ट्रीब्यूटर ने हमसे कहा कि ," आपकी फिल्म क्योंकि छोटी है अगर इसे यू - ए सर्टिफिकेट मिलता तो हम ५ ० / ६० सिनेमा हाल में रिलीज़ कर पाते और हमें पारिवारिक दर्शक मिल जाते फिल्म के लिए. इससे आपकी फिल्म हिट न भी होती लेकिन  आपकी लागत तो निकल ही जाती.
फिल्म का क्या होना था खैर लेकिन मेरे लिए आश्चर्य हुआ जब 'तालाश' फिल्म आयी और उसे यू ए  सर्टिफिकेट  दिया गया. फिर हाल ही में "एक थी डायन" भी यू ए के साथ रिलीज़ हुई. अब सेंसर बोर्ड कौन बताये की तालाश की करीना करीना थी  घोस्ट नहीं   और 'एक थी डायन' की डायने-चुड़ैल थी घोस्ट नहीं. क्या इसलिए दोनों को यू ए दिया गया .    
और भी कई हॉरर फ़िल्में हैं जिन्हें यू ए सर्टिफिकेट दिया गया लेकिन उनका नाम गिनाने की जरुरत नहीं है .जब ताज़ा उदाहरण मौजूद है.
क्या यह सेंसर बोर्ड की दोहरी निति नही कि बड़े निर्माताओं की फिल्म यू ए और छोटे निर्माता बोल भी नहीं सकते . अब मैंने अपनी फिल्म टी वी के लिए सेंसर के लिए फिल्म एजेंट को दी है. इस उम्मीद के साथ की अब मुझे यू ए सर्टिफिकेट मिल जायेगा तो मैं सेटेलाइट और दूरदर्शन पर फिल्म बेचने की जद्दोजहद शुरू करूंगा क्योंकि चैनलों को भी तालाश और एक थी डायन जैसी फिल्मों का इंतज़ार रहता  है .
अब दूसरी बात यह है कि  जब सेंसर बोर्ड फिल्म देखता है तो थियेटर के लिए '' सर्टिफिकेट देता है और टी वी के लिये उन्हें दोबारा फिल्म दिखाओ और फिर वह निणय लेते हैं कि कौन सा दृश्य हटा कर यू ए या यू सर्टिफिकेट देना है. लेकिन यह  काम तो पहले शो के दौरान भी हो सकता है उसके लिए दूसरे शो की क्या जरुरत है. सेंसर बोर्ड के लिए एक शो का  आयोजन करने के लिए ६० हजार से १,५० लाख रूपए लगता है. अब आप बताये कि छोटा या बड़े  निर्माता यह बेवकूफी क्यों झेलते आ रहे हैं.
अब मैंने अपनी बात कह दी छापना या न छापना आपका अधिकार है .

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Announcement from D23 for Lucasfilm, Marvel Studios and 20th Century Studios' theatrical titles

ANAHEIM, Calif. (Sept. 10, 2022) — The Walt Disney Studios continued to fuel the fire ignited at yesterday’s showcase with a jam-packed pr...