सलीम अनारकली की मोहब्बत फिल्माने की सच्ची कहानी !
मुग़ल ए आज़म ५ अगस्त १९६० रिलीज़ हुई। मुग़ल ए आज़म को पूरा होने में १६ साल लगे। इस दौरान फिल्म की पूरी कास्ट और क्रू में बदलाव हो गया। यहाँ तक कि फिल्म के निर्माता भी बदल गए। मुग़ल- ए - आज़म शीराज़ अली हकीम की दिमाग की उपज थी। देश विभाजन के बाद वह पाकिस्तान चले गए। वह जाते जाते एक पारसी व्यवसाई शपूरजी पलोनी को अपना काम सौंप गए। पलोनी को फिल्म निर्माण का कोई अनुभव नहीं था। वह के आसिफ की परफेक्शन के लिए लगातार जुटे रहने की आदत से इतना ऊब गए थे कि उन्होंने निर्देशक यानि के० आसिफ को ही बदल देने की सोची थी । शुरू में के० आसिफ के पसंदीदा हीरो चंद्रमोहन फिल्म करने वाले थे। लेकिन, उनकी दिल का दौरा पड़ने से अकस्मात् मौत हो गयी। चंद्रमोहन के साथ नर्गिस फिल्म में नायिका थी। चंद्रमोहन की मृत्यु हुई तो आसिफ ने नायिका भी बदल दी। उस समय तक नर्गिस ने दस रीलें पूरी कर दी थी। उस समय राजकपूर और नर्गिस का रोमांस सुर्ख जो रहा था। राजकपूर नहीं चाहते थे कि उनकी प्रेमिका उनके प्रतिद्वंद्वी के साथ फिल्म करे। क्योंकि, उस समय तक फिल्म में चंद्रमोहन की जगह दिलीप कुमार ने ले ली थी यहाँ, एक दिलचस्प तथ्य यह है कि दिलीप कुमार ने १९४५ में मुग़ल ए आज़म का सलीम बनने की कोशिश की थी। लेकिन, उस समय दिलीप कुमार इतने विश्वसनीय नहीं हुए थे। इस लिए आसिफ ने सलीम के रोल के लिए दिलीप कुमार को न कर दी। वास्तविकता तो यह है कि अनारकली की भूमिका के लिए आसिफ की पहली पसंद वीणा थी। परन्तु कुछ आपसी मनमुटाव के बाहर हो गई। आसिफ की दूसरी बीवी निगार सुल्ताना बहार की भूमिका की थी। निगार आसिफ की दूसरी पसंद थी। के आसिफ ने बहार का रोल सितारा देवी को ध्यान में रख कर लिखाया था। सितारा देवी आसिफ की पहली बीवी थी। वह के आसिफ की बतौर निर्देशक पहली फिल्म फूल की नायिका थी। के आसिफ ने दिलीप कुमार की बहन अख्तर से शादी की थी। मुग़ल ए आज़म की अनारकली की भूमिका के लिये वैजयंतीमाला को चुना गया था। लेकिन, बीआर चोपड़ा की फिल्म नया दौर की शूटिंग के दौरान दोनों के बीच गहरे मतभेद हो गए। उनकी जगह मधुबाला आ गई। हालाँकि,मधुबाला के साथ भी दिलीप कुमार का मनमुटाव था। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि अलग अलग समय में अनारकली की भूमिका के लिए सुरैया, नसीम बनु और बेगम पारा का नाम आया। परदे पर अकबर को जीवंत कर देने वाले पृथ्वीराज कपूर भी आसिफ की पहली पसंद नहीं थे। आसिफ इस भूमिका में सप्रू को देखना चाहते थे। युवा सलीम के किरदार में तबलावादक उस्ताद ज़ाकिर हुसैन को लिया जाना था। पर बाद में जलाल आगा आ गए। आसिफ को परफेक्शन पसंद था। इसलिए, फिल्म की शूटिंग तभी शुरू हो पाती, जब आसिफ संतुष्ट हो जाते। मुग़ल ए आज़म के मशहूर शीशमहल, जिस पर अनारकली, अकबर और सलीम की मौजूदगी में जब प्यार किया तो डरना क्या गीत फिल्माया गया था, को मोहन स्टूडियो में खड़ा करने में दो साल लग गए थे। इसके लिए फिरोजाबाद से शीशा कारीगर बुलाये गए थे। इस गीत को आर डी माथुर ने फिल्माया था। यह गीत कितना महँगा पड़ा होगा, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरी फिल्म के बजट के बराबर पैसा इस गीत पर खर्च हुआ था। फिल्म की शूटिंग १९४६ में बॉम्बे टॉकीज में शुरू हुई। मुग़ल ए आज़म का प्रीमियर बॉम्बे के नए खुले सिंगल स्क्रीन थिएटर मराठा मंदिर में, जिसकी दर्शक क्षमता ११ सौ सीटों की थी हुआ। फिल्म पूरे देश में १५०० सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई। मराठा मंदिर में मुग़ल ए आज़म के तीन हफ़्तों के टिकट एडवांस बुक हो गए थे। मराठा मंदिर में यह फिल्म तीन साल तक लगातार चली। फिल्म का तमिल में डब संस्करण अकबर बुरी तरह से असफल हुआ था। इसलिए इसे इंग्लिश में डब करने का इरादा छोड़ देना पड़ा।
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